तिरे साथ से हम, अकेले भले थे
122 + 122 + 122 + 122
तिरी बज़्म से, सोचकर ये उठे थे
तिरे साथ से हम, अकेले भले थे
ग़मे-हिज़्र की रातें, घनघोर काली
ज़रा याद करना, कभी हम हँसे थे
हुआ इश्क़ गहरा, लगा सख्त पहरा
मुलाक़ात के फिर, नए सिलसिले थे
तुझे पा के, नींदे गंवा के, मिला क्या
हुई ग़म की बारिश, न बादल फटे थे
न पूछो ऐ यारो, फ़साना-ए-उल्फ़त
‘महावीर’ वो लम्हे, कितने खले थे