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तिमिर और आलोक (कुंडलिया)*
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आते – जाते नित्य ही , तिमिर और आलोक
इनसे कैसा हर्ष है , इनसे कैसा शोक
इनसे कैसा शोक , रोज का आना – जाना
जग में रहो तटस्थ , मिले जो भी अपनाना
कहते रवि कविराय ,चार दिन सुख-दुख पाते
फिर होता बदलाव , दृश्य फिर नूतन आते
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आलोक = प्रकाश
तिमिर = अंधेरा ,अंधकार
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451