तारीखें पड़ती रहीं, हुए दशक बर्बाद (कुंडलिया)
तारीखें पड़ती रहीं, हुए दशक बर्बाद (कुंडलिया)
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तारीखें पड़ती रहीं , हुए दशक बर्बाद
न्याय मिले जल्दी सुलभ ,आई किसको याद
आई किसको याद , कोट काले का खर्चा
जेवर बिके मकान, जगह सब यह ही चर्चा
कहते रवि कविराय , मुकदमों से यह सीखें
करते शुरू जवान , वृद्ध जाते तारीखें
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451