तारक मेरे पथ के हो
तुम तारक मेरे पथ के हो
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हे राघव रघुवंशमणि ,
हे अवधपति कौशलाधीश ।
तीनलोक के नाथ प्रभु ,
तुम जगन्नाथ और जगदीश ।।
घट घट में केवल तोय तेरा,
तू है सर्वत्र सकलाधीश ।
तुम बिन जीवन कल्पित नही,
तू ही है जीवनाधीश ।।
दीनन के देख सके आँसू,
ऐसे लोचन कैसे पाये हो ।
क्या भूल गए तुम दयानिधि,
सबरी की झूठन खाये हो । ।
सुख देने को केवट के हित,
पद पंकज नाव धराये हो ।
सब छोड़ दिए सुदामा हित ,
नंगे पैर ही तुम धाये हो ।।
तुम भूल गए करुणासागर ,
नलनील के पत्थर तराये हो ।
अपनी पद की ठोकर से ,
और पत्थर को नारी बनाये हो ।।
क्या याद नही तुमको अब,
मद मान उदधि का हराये हो ।
तुम गौरव हो रघुकुल के ,
क्यों अपनी छोटी कराये हो ।।
मैं कब से तुम को टेर रहा ,
क्यों कान पे ठीकरी धराये हो ।
अब अपने कर कमलों से ,
मेरी नैया उस पार कराये हो ।।
राम राम बस राम जपूँ,
मेरे रोम में राम ही राम समाये हो ।
हर साँस साँस से राम कहूँ ,
क्यों फिर भी नाम धराये हो ।।
रघुकुलकेतू दया करो ,
सबका ही प्रभु तुम कष्ट हरो ।
नेनन के पट क्यों बन्द किये ,
मेरी भव बाधा हरो ।।
राजेंद्र ,महोदार कहते तुमको ,
तुम पालक जग के हो ।
सत्यव्रत कहूँ सत्यवाक कहूँ ,
तुम तारक मेरे पथ के हो ।।
नूतन योगी
30 अगस्त 2018