ताजमहल
कब्र पर महल बनाकर भी
कोई किसी की जान
बचा नही सकता,
कुदरत का कानून
कभी बदला नही और
न कोई बदल सकता;
क्या बादशाह क्या फकीर
क्या अक्लमंद क्या जाहिल,
कोई ना पा सकेगा कभी
फतह अपनी मौत पर,
फिर क्या नाज करना
बनाकर कोई मकबरा
जैसे ताजमहल;
रहने दो कुदरत को
अपनी जगह पर और
जीने दो चैन से
अजीजों की रूहों को
अपनी अपनी कब्र पर,
बनाकर कोई ताजमहल
परेशान न करो कब्रवालों को
छीन कर उनकी सुख-चैन
न बनाओ उनके कब्र को
कोई नुमाइश घर ।