ताकब त नाहीं
मनवा के, मनवे मुताबिक चलत बा सब, समझाइब, कब ले?
सूतल त नाहीं, आंखि मूनि ओंठगल बा, जगाइब, कब ले?
रूप पे फूल के मोहाइल बात अइसन त नाहीं,,
ताकब त नाहीं बकिर महक से खुद के, बचाइब, कब ले?
– गोपाल दूबे
मनवा के, मनवे मुताबिक चलत बा सब, समझाइब, कब ले?
सूतल त नाहीं, आंखि मूनि ओंठगल बा, जगाइब, कब ले?
रूप पे फूल के मोहाइल बात अइसन त नाहीं,,
ताकब त नाहीं बकिर महक से खुद के, बचाइब, कब ले?
– गोपाल दूबे