तब से नहीं है क़ल्बो-जिग़र इख्तियार में
ग़ज़ल
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जब से पिलाया जाम मुझे तुमने प्यार में
मदहोश हम हुए हैं तभी से खुमार में
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बीनाई क़त्ल की है नज़र की कटार में
अंदाज़ क़ातिलाना है कजरे की धार में
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देखा है जब से हुस्नो-नज़ाक़त सनम तेरी
तब से नहीं है क़ल्बो-जिग़र इख़्तियार में
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दुनिया की भीड़ में मुझे ढूँढ़ोगे दर-ब-दर
जब ओढ़ के सो जाऊँ क़फन मैं मज़ार में
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कैसे बसा लूँ तेरी मुहब्बत मेरे सनम
इतनी जगह कहाँ है दिले दाग़दार में
——-गिरह
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झटके में रख दिया है मसल कर के आरज़ू
सहरा के फूल थे गुँथे उल्फ़त के हार में
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खुशियाँ तू दे या ग़म मुझे सब कुछ क़ुबूल है
शामिल तुझे मैं कर चुका दिल के क़रार में
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जब से गये हो छोड़ के “प्रीतम” मेरे मुझे
मुरझाए लग रहे हैं कली गुल बहार में
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प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)
21/09/2017
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