तबाही की आहट
मातम सा पसरा हुआ है,
चौतरफ़ा सन्नाटा घेर रहा,
हुंकार भरे हंस कोई कैसे
देखों श्मशान भरे पडा है.
.
बहती लाशें कुछ कह रही,
निचोड कर फेंक दिया है.
देश को कौन संभाल रहा.
चूल्हे सबके बुझा रहा है.
.
आदमी स्तब्ध रह गया है,
टैक्स पर टैक्स लगा रहा,
सूखा घेट ठेंगा दिखा रहे.
शराब में इलाज बता रहे.
.
फसाद की जड को न ही
छुपा और न ही हटा रहा है.
लोकलाज रखी ताक पर.
इसे विकास बता रहे हो.
.
निसर्ग मे विष घोल रहे हो,
पशु पक्षियों से तोल रहे हो.
माला सम्प्रदायी फेर रहे हो.
मार एक समान कुल रहे हो.
.
डॉक्टर महेन्द्र सिंह हंस