तनिक नहीं विश्वास किया।
किया समर्पित जीवन जिसको, कानन में क्यों वास किया|
त्याग चले आलय वनिता को, तनिक नहीं विश्वास किया||
मान रहे पथ – बाधा ही थे,
पर हमको कब ज्ञात हुआ|
बिना कहे जब छोड़ गये तुम,
हिय पर यह आघात हुआ|
सिद्धि प्राप्ति की उत्कण्ठा ने,
तुमको मुझसे दूर किया|
उर में उपजे उपालम्भ ने,
शायद हमको क्रूर किया|
किया समर्पित तन – मन तुमको, तेरे हित अरदास किया|
त्याग चले आलय वनिता को, तनिक नहीं विश्वास किया||
कहता है मन रहो जहाँ तुम,
दुखी न हो जन की दुख से|
सिद्धि मिले जिस पथ जा स्वामी,
चलो निरंतर ही सुख से|
निष्ठुर कहते अब दृग तुमको,
पढ़ो नहीं इनकी भाषा|
तिलक लगा भेजे रण करने,
नारी की यह परिभाषा|
दीर्घ रहे सौभाग्य हमारा, कारण यह उपवास किया|
त्याग चले आलय वनिता को, तनिक नहीं विश्वास किया||
गये किन्तु जो कहकर जाते,
पथ में पुष्प बिछाते हम|
संसाधन पथ करे प्रदर्शित,
संग ही अपने लाते हम|
पर अपनाकर छोड़ गये हो,
हमें नहीं पहचान सके|
नारी मन के सबल पक्ष को,
शायद ही तुम जान सके|
जिसने मन से अपनाया था, जिस हिय में अधिवास किया|
त्याग चले आलय वनिता को, तनिक नहीं विश्वास किया||
छोड़- छाड़ आलय हर प्रण को,
कानन में तुम चले गए|
तन-मन-जीवन अर्पित कर हम,
क्यों लगता है छले गए|
परित्याग की अगन मिटाने,
आओगे अभिलाष यहीं|
मन की व्याकुलता हरने की,
औषधि अपने पास यहीं|
तेरे खातिर ही प्राणेश्वर, मन अपना रनिवास किया|
त्याग चले आलय वनिता को, तनिक नहीं विश्वास किया||
✍️ पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’