तनातनी
सर्द हवा ने
धूप को पीट पीटकर
धरती पर निश्तेज पटक दिया
यों विगत
चैत्र माह का
बदला लिया ।
धूप के हठ से
पानी से भाप
भाप से बादल बने
पानी ने
गगन के सहयोग से
धूप को अगवा किया ।
वरिष्ठ मौसम की तनातनी
एक माह के वसंत को
नहीं भाती
वह आता है
महककर चला जाता है
छोटा किंतु निर्विवाद जीवन
केवल उसने ही जिया ।
लक्ष्मी नारायण गुप्त