त’अम्मुल(पशोपेश)
सरगर्मी -ए- फिज़ा में ज़ेहनी -कशमकश जारी है ,
हर शख़्स बेचैन है, एहसास -ए- जुनूँ तारी है,
बाहम गुफ़्तगू में मसअलों पर मशवरे भारी हैं,
अजीब हालात है , अजब सी बेजारी है ,
हर शख़्स की सोच अलग, अंदाज़ -ए-, बयाँ जुदा-जुदा ,
हर नज़रिया अलग, हर फ़लसफ़ा अलाहिदा,
कुछ समझ में नहीं आता ! गर्दिश -ए- दौरा का
ये रुख़ क्या है ?
ये दानिश-मंदों की जमात है ? या अहम़कों का ये जमघट है ?