डर
*डर की भी,अपनी अभिव्यक्ति है,
वह शोर कर करके हिम्मत जुटाता है,
चुनिन्दा लोगों पर निशाने बनाकर
*खौफ़ फैलाता है,
बिन पूछे हवा हवाई बातें करता है.
वह विरोध से डरता है,
और तो और सत्ता के दुरुपयोग करता है.
कमान पूंजीपतियों के हाथ,
खुद अभिनय करता है.
भरोसे खुद पर नहीं,
शक दूसरों की नियत पर करता है.
नफरत विरोधियों पर,
प्रेम खुद से कैसे कर सकता है.
डॉक्टर महेन्द्र सिंह हंस