ठहर जा मानव
दौड़ रहा है जग में मानव,
सुबह सवेरे जग गया मानव,
भिक्षा मांँगन घर के आंँगन,
कैसा जीवन खोज रहा है।
खाने को भटक रहा है,
पाने को टहल रहा है,
भूखा तू कितना है मानव,
इंसानों को भी नहीं बख्श रहा है।
दुनिया तेरी इतनी सुंदर ,
जो चाहे तू वही कर,
शौक तेरे हैं अद्भुत अत्यधिक,
जज्बातों में तू रो रहा मानव।
मानव तो कल्याण का साथी,
परहित का तू बन जा आदि,
मोह-लालच-क्रोध कम कर मानव,
धैर्य रख खुश रह जा मानव।
# बुद्ध प्रकाश ;
***मौदहा हमीरपुर।