Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
9 Dec 2022 · 2 min read

टूटता तारा

टूटता तारा

रामदीन अपने चार बच्चों और अपनी बीवी के साथ बड़ी हँसी-खुशी रहता था। रोहित, कमल, संजय और जूली उसकी जान थे। बच्चों को जो भी जरूरत होती, वह उसे खुशी से पूरा करता। सब की फरमाइश सर आँखों पर रहती।

एक बार रात में वह अपने बच्चों के साथ छत पर टहल रहा था। जूली को तभी आसमान में एक चमकती हुई पतली सी लकीर की तरह कुछ रोशनी दिखाई दी जो तेजी से भाग रही थी। जूली चहकते हुए बोली – भैया! वह देखो क्या है? पापा! बताओ ना क्या है वह?
रामदीन ने कहा – वह एक टूटता तारा है बेटा।
कमल बोल पड़ा – यह टूटता तारा क्या होता है पापा?
रोहित ने भी कहा – सारे तारे क्यों नहीं टूटते? बाकी तो बस टिमटिमाते रहते हैं।
रामदीन ने कहा – बेटा यह तारा बिल्कुल खास है। जो भी इसे देखता है तो वह इससे अपनी मुरादें माँगता है और यह उनकी मुरादें पूरी कर देता है।
तभी जूली बोल पड़ी – जैसे आप हमारी मुरादें पूरी करते हैं।
रामदीन बेटी की बात पर हँसने लगे।
कमल ने फिर कहा – पापा क्‍या आप भी हमारे लिए टूटते तारे हैं? तो उनकी माँ ने उन्हें चुप कराते हुए कहा कि बेटा ऐसा नहीं बोलते।

समय बीतता गया। बच्चे अब जवान हो गए थे। कमाने भी लगे थे। समय बीतने और उम्र बढ़ने के साथ उनकी माँगे भी बढ़ गई थी। सभी रामदीन की जीवन भर की गाढ़ी कमाई और मकान पर बँटवारे के लिए नजर गड़ाए हुए थे। आए दिन आपस में झगड़ा होता रहता। इसी बीच चिंता के मारे रामदीन की पत्नी चल बसी। सभी रिश्तेदार घर पर पहुँचे हुए थे। सब जगह मातम पसरा हुआ था। लेकिन वे सब इन सबसे बेफिक्र थे।

माँ को गए अभी कुछ ही दिन बीते थे कि एक दिन बँटवारे की बात को लेकर संजय और कमल में तू तू मैं मैं हो गई।

सभी रामदीन के पास पहुँचे और बोले – आज फैसला हो ही जाना चाहिए। जिसके हिस्से में जो भी आए, दे दीजिए। आखरी बार आपसे अपना अपना हक माँग रहे हैं।

रामदीन आँखों में आँसू लिए नि:शब्द पड़ा हुआ था। जैसे बोलने की शक्ति ही क्षीण पड़ गई हो। उसकी गृहस्थी की गाड़ी का एक पहिया तो पहले ही निकल चुका था और अब पूरी की पूरी की गृहस्थी टूट कर बिखरने वाली थी। काँपते हुए उसने कलम उठाया और वसीयत के कागजात पर दस्तखत कर दिया। वह टूट रहा था, लेकिन जाते-जाते अपना कर्तव्य निभा कर जा रहा था। उसने अपने बच्चों की आखिरी मुराद पूरी जो कर दी थी। बरसों पहले की धुंधली यादें उसके जेहन में ताजा हो गई। आज जीवन के की अंतिम घड़ी में वह एक सत्य से परिचित हो रहा था। सच में वह एक टूटता तारा ही तो था जो मुराद पूरी करते करते बुझ गया।

– आशीष कुमार
मोहनिया, कैमूर, बिहार

1 Like · 334 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
*सब जग में सिरमौर हमारा, तीर्थ अयोध्या धाम (गीत)*
*सब जग में सिरमौर हमारा, तीर्थ अयोध्या धाम (गीत)*
Ravi Prakash
शिशुपाल वध
शिशुपाल वध
SHAILESH MOHAN
साइबर ठगी हाय रे, करते रहते लोग
साइबर ठगी हाय रे, करते रहते लोग
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
ना कोई संत, न भक्त, ना कोई ज्ञानी हूँ,
ना कोई संत, न भक्त, ना कोई ज्ञानी हूँ,
डी. के. निवातिया
💐प्रेम कौतुक-186💐
💐प्रेम कौतुक-186💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
■ दास्तानें-हस्तिनापुर
■ दास्तानें-हस्तिनापुर
*Author प्रणय प्रभात*
बनना है बेहतर तो सब कुछ झेलना पड़ेगा
बनना है बेहतर तो सब कुछ झेलना पड़ेगा
पूर्वार्थ
23/167.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
23/167.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
उनको देखा तो हुआ,
उनको देखा तो हुआ,
sushil sarna
🥀 *गुरु चरणों की धूल*🥀
🥀 *गुरु चरणों की धूल*🥀
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
दूसरों को खरी-खोटी सुनाने
दूसरों को खरी-खोटी सुनाने
Dr.Rashmi Mishra
भारत का फौजी जवान
भारत का फौजी जवान
Satish Srijan
चंद अशआर -ग़ज़ल
चंद अशआर -ग़ज़ल
डॉक्टर वासिफ़ काज़ी
मुद्दत से तेरे शहर में आना नहीं हुआ
मुद्दत से तेरे शहर में आना नहीं हुआ
Shweta Soni
यह उँचे लोगो की महफ़िल हैं ।
यह उँचे लोगो की महफ़िल हैं ।
Ashwini sharma
क्यों ? मघुर जीवन बर्बाद कर
क्यों ? मघुर जीवन बर्बाद कर
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
सूरज मेरी उम्मीद का फिर से उभर गया........
सूरज मेरी उम्मीद का फिर से उभर गया........
shabina. Naaz
पिता का पेंसन
पिता का पेंसन
Dinesh Yadav (दिनेश यादव)
बेगुनाही की सज़ा
बेगुनाही की सज़ा
Shekhar Chandra Mitra
पहला अहसास
पहला अहसास
Falendra Sahu
चाय पीने से पिलाने से नहीं होता है
चाय पीने से पिलाने से नहीं होता है
Manoj Mahato
*देश का दर्द (मणिपुर से आहत)*
*देश का दर्द (मणिपुर से आहत)*
Dushyant Kumar
महायज्ञ।
महायज्ञ।
Acharya Rama Nand Mandal
ओ चाँद गगन के....
ओ चाँद गगन के....
डॉ.सीमा अग्रवाल
इतना ही बस रूठिए , मना सके जो कोय ।
इतना ही बस रूठिए , मना सके जो कोय ।
Manju sagar
करी लाडू
करी लाडू
Ranjeet kumar patre
भीनी भीनी आ रही सुवास है।
भीनी भीनी आ रही सुवास है।
Omee Bhargava
शराब का सहारा कर लेंगे
शराब का सहारा कर लेंगे
शेखर सिंह
मायड़ भौम रो सुख
मायड़ भौम रो सुख
लक्की सिंह चौहान
"नारियल"
Dr. Kishan tandon kranti
Loading...