*टिकट न मिलने का दुख (हास्य व्यंग्य)*
टिकट न मिलने का दुख (हास्य व्यंग्य)
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जो लोग राजनीति में टिकट मिलने और न मिलने के महत्व को समझते हैं, वही महसूस कर सकते हैं कि एक सच्चे टिकट-साधक को टिकट न मिलने के बाद कितनी छटपटाहट होती है । जरा सोचिए ! नश्वर जीवन दिन-प्रतिदिन बिना टिकट मिले हुए नष्ट हो रहा है और अभी तक टिकट नहीं मिल पाया है !
टिकट राजनीति में जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य होता है । यह मिल जाए तो चुनाव लड़ने की आगे की यात्रा संपन्न होती है। लेकिन अगर टिकट ही नहीं मिला तो समझ लीजिए, स्थिति यह होती है कि व्यक्ति ने छत पर जाकर पतंग उड़ाई और चार फीट ऊपर उड़ते के साथ ही किसी ने सुत्तलों से पतंग काट दी । आदमी तो चरखी करने का ही होकर रह जाता है । ऐसा जीवन भी भला कोई जीवन है! व्यक्ति उदास होता है । ऑंख से ऑंसू टपकते हैं । समर्थक और शुभचिंतक चारों ओर से घेरे हुए खड़े होते हैं। मालिक हुकम कीजिए -ईंट से ईंट बजा देंगे ! नेता जी तुम संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ हैं ! -नारे लगने लगते हैं । व्यक्ति भावुक होता है । अपने समर्थकों से कहता है -“इतना समय बीत गया टिकट की साधना करते हुए, अभी तक कोई फल नहीं मिला है।” फल अर्थात टिकट !
सबकी अलग-अलग साधना होती है । कोई टिकट-वितरण के ठीक चार दिन पहले पार्टी में शामिल होता है और टिकट मिलने की आशा में बेतहाशा खर्च कर देता है। कुछ लोग चार-छह महीने पहले से यह सोचकर पार्टी में आते हैं कि यहॉं टिकट मिल सकता है और जीतने की संभावना भी है । अपनी-अपनी सेटिंग होती है, उसके हिसाब से टिकटार्थी पार्टी में साधनारत रहते हैं ।
कई लोग चार-छह साल से टिकट की उम्मीद में पार्टी के कार्यक्रमों में दरी-चॉंदनी बिछाते हैं । लेकिन उनको भी जब निराश होना पड़ता है, तब समझ लीजिए उनका भी दिल टूट जाता है । पार्टी में क्या रखा है, उनका अंतर्मन कहता है ! छोड़ो यह सब! किसी दूसरी पार्टी को ज्वाइन करो ! वहॉं शायद टिकट मिल जाए !
व्यक्ति अपना वह मुखौटा जो उसने साल-छह महीने से या पॉंच साल से पार्टी के प्रति निष्ठा का ओढ़ा हुआ होता है, उतार फेंकता है । अब उसके ऑंख, कान, नाक और मुॅंह -सभी स्थानों से टिकट की लार टपकती हुई दिखती है। शब्द-शब्द से टिकट के प्रति निष्ठा और आस्था का भाव गुंजायमान होता है । उसका रोम-रोम टिकट-टिकट कहता है । इस पार्टी से न सही तो दूसरी पार्टी से सही, दूसरी से न सही तो तीसरी पार्टी में जाकर टिकट के लिए प्रयत्न किया जाएगा । लेकिन इस जन्म में टिकट लेकर ही रहेंगे। अन्यथा फिर जन्म लेना पड़ेगा और फिर टिकट लेने के लिए साधना करनी होगी !
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लेखक : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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