झूठ की चकाचौंध
झूठ की चकाचौंध
चीखते हैं
टी. वी. चैनल
एक सुर में
मिला रहे हैं ताल
सभी समाचार-पत्र
इनके मालिक हैं
सरकार में सांझेदार
या हैं नतमस्तक
विज्ञापन के नाम पर
मिले धन के समक्ष
बोला जाता है
एक ही झूठ
हजार चैनल पर
हजार बार
बना दिया जाता है
सच को झूठ
बड़ी कलाकारी से
सत्य नहीं दे पाता
विज्ञापनों का शुल्क
हो जाता है शिकार
उपेक्षा का
झूठ की
चकाचौंध में
जो दिखता है
वही बिकता है
-विनोद सिल्ला©