*झूठी हैं दुनियादारियाँ सारी(गीत)*
झूठी हैं दुनियादारियाँ सारी(गीत)
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ये दुनिया झूठ है, झूठी हैं दुनियादारियाँ सारी
(1)
यहाँ पर स्वार्थ के डेरे हैं,जो अभिमान को घेरे
यहाँ धन और दौलत के हैं ,सब झगड़े तेरे-मेरे
यहाँ हैं फूल कागज के, हैं झूठी क्यारियाँ सारी
(2)
यहाँ बोझा भी अपनी देह का खुद ही उठाना है
यहाँ नकली हँसी सबकी है,नकली मुस्कुराना है
यहाँ चतुराइयाँ सबमें ही, हैं मक्कारियाँ सारी
(3)
यहाँ पर साथ कब किसका निभा कोई भी पाता है
यहाँ शमशान तक ज्यादा से ज्यादा कोई जाता है
धरी रहती हैं चाहे जो हों, रिश्तेदारियॉं सारी
ये दुनिया झूठ है ,झूठी हैं दुनियादारियाँ सारी
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रचयिताः रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा रामपुर (उ.प्र.)
मो,9997615451