#झुनझुने
🔥
देश की बागडोर अभी जिन हाथों में है, उन्हें अपने मन की कहने और करने के लिए कम-से-कम पन्द्रह वर्ष मिलने चाहिएं।
लेकिन, जहाँ-जहाँ पग टेढ़े पड़ें, वहाँ-वहाँ रोकने और टोकने का दायित्व लेखकों, कवियों, पत्रकारों, अध्यापकों और बुद्धिजीवियों का है।
इसी दायित्व की पूर्ति का एक प्रयास है यह कविता।
★ #झुनझुने ★
किसके लबों पे है हँसी
कौन गुनगुना रहा है
सरकार जानती है सब
कोई जी ऐस टी चुरा रहा है
किसके लबों पे है हँसी . . . . .
किस्मत बुलंद है राम की
तिरपाल सिर पे है तनी
बुलंद इमारतों में तेरा नामलेवा
इक आ रहा है इक जा रहा है
किसके लबों पे है हँसी . . . . .
हाथों में थाम रखिए
सुर्ख़ दामन उम्मीद का
जहाँ-जहाँ से मिट रही है ज़िन्दगी
मुल्क सब्ज़ा हुआ जा रहा है
किसके लबों पे है हँसी . . . . .
सदियों रहा है मुल्क मेरा
जाहिलों का डेरा
आया है मर्द मुक्कमल जवाँ
घर-घर शौचालय बना रहा है
किसके लबों पे है हँसी . . . . .
आटा तेल नून और लकड़ियाँ
सब हवा हुए
हिन्दसों की बाज़ीगरी में
हर कोई डाटा खा रहा है
किसके लबों पे है हँसी . . . . .
चोरों का मुल्क बुत रूहों के बिना
इधर-उधर हैं डोलते
सुजान शाह हर जगह
सी सी टी वी लगा रहा है
किसके लबों पे है हँसी . . . . .
नोटों की भूलभुलैया में
तिनके सब बिखर गए
रखवाला अभी बिदेस में
बँसी बजा रहा है
किसके लबों पे है हँसी . . . . .
यारों के सँग उड़ेगा
मानिंद गोली बंदूक की
रेंगता और रेंकता कोई
गधापन दिखा रहा है
किसके लबों पे है हँसी . . . . .
सिर पे आँचल आँखों में हया
राह तकती है उर्मिला की बेटी
लछमन तेरा अभी ख़ातूनों को
जायज़ हक़ दिला रहा है
किसके लबों पे है हँसी . . . . .
चलिए फिर तलाशिए
कोई केशव बलिराम का
बिके हुओं से न उम्मीद रख
मालिक झुनझुना बजा रहा है
किसके लबों पे है हँसी . . . . . ।
१६-९-२०१७
#वेदप्रकाश लाम्बा
यमुनानगर (हरियाणा)
९४६६०-१७३१२ — ७०२७२-१७३१२