झींगुरों की सदा गूंजती है
रात कुछ और गहरी हुई है
झींगुरों की सदा गूंजती है
दूर होकर मिरे दिल ने जाना
कौन मुझमें हमेशा रही है?
चश्मा, मोज़ा नहीं ढूंढ़ पाऊं
तेरी आदत मुझे हो गई है
हाथ में चन्द तस्वीरें थामे
ज़िंदगी कबसे ठहरी हुई है
मीर-ग़ालिब खड़े रूबरू क्यों
तूने सदियों को आवाज़ दी है