झाड़ू अउरी बेलन
ई दर्द करेला केतना दिन
झाड़ू भा बेलन के खाइल
ऊ बड़ी भाव से पुछलें पर
हमरा से उत्तर ना आइल
पीठी में दर्द जियादे बा
ई दवा अभिन कबले खाईं
ऊ हाथ जोरि पूछे लगलें
अनुभव होखे तऽ बतलाईं
हम कहनी बेलन के बेलल
बस रोटी पूड़ी खाईले
झाड़ू हम भले खरीदीं पर
तहरा जइसे ना पाईले
झाड़ू चौकी बेलन ई तऽ
घरवा के बस पहिचान हवे
ई प्रेम बढ़ावे घरवा में
ना लड़ले के सामान हवे
ई पेट भरेला मनई के
जब चौकी बेलन टकराला
जवना घर में ना बाजे ई
बुझिहऽ कि लागल बा ताला
जवना घर में कई दिनन से
लागल जे ना होई झाड़ू
तब करी बुराई हीत नात
होइहें जीजा चाहें साढ़ू
तहरा पर मइल चढ़ल होई
दारू जूआ भा तासे के
कुछ अइसन काम करत होइबऽ
घर के लछमी के नासे के
ई बेलन भूत भगावेला
मन के चुरइल के मारेला
झाड़ू के ईहे काम हवे
कि सगरी मइल उतारेला
कविता- आकाश महेशपुरी
दिनांक- 03/02/2024