ज्ञान ?
सदियों से भटक रहा,
ज्ञान की खोज में इंसान।
पर मिलता कहाँ संसार में,
चैतन्य स्फुरण ही पहचान।
वेद क़ो ही कहते ज्ञान,
ज्ञान का ही वेद नाम है।
चार भेद हैं जिसके,
ऋक् यजुः अथर्व और साम है।
ऋक् देता कल्याण को,
यजुः है पौरूष की खान।
साम क्रीड़ा का ज्ञान,
अथर्व है अर्थ प्रधान।
इन चारों ज्ञान से ही,
मानव जीवन महान है।
प्राणधारियों की चेतना,
पाती उत्थान है।
उपमा दी गई इन्हें,
है ब्रह्मा के मुख चार।
चार वर्ण व आश्रम,
बिष्णु के भुज चार।
बाल्य तरूण पौरूषावस्था,
और संन्यासी अवस्था चार।
ऋक-ब्राह्मण क्षत्रिय-यजुः
अथर्व-वैश्य शूद्र-साम है।
चतुर्विध वर्गीकरण का ज्ञान ह़ै।
वेद स्वरूप है चेतन ही,
चैतन्य शक्ति का स्फुरण है।
जो ब्रह्मा से उत्पन्न सृष्टि,
गायत्री नाम सम्बोधन है।
इसी वजह वेदो की माता,
वेदमाता कहलाती है।
विश्व माता देव माता,
आदिशक्ति पूजी जाती है।