श्री श्री रवि शंकर जी
1.ज्ञान,ईमान,पहचान से खरा है,
ये एक व्यक्ति नहीं परम्परा है।
न कहीं अवसाद है,
पसरा आह्लाद है।
शरण में होता जो,
वह बनता प्रह्लाद है,
सिखाते ‘जीने की कला’,
दूर होती हर बला।
जीवन का लक्ष्य मिले,
जो भी इनके साथ चला।
बहुत सरल है प्रक्रिया,
सभी कर सकते पुरुष या त्रिया।
अंदर प्रकाश होता,
करें जब सुदर्शन क्रिया।
श्री गुरु देव में प्रेम सागर भरा है।
ये एक व्यक्ति नहीं परम्परा है।
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2. देदीप्यमान सारे जग में,
गुरुदेव ने है अवतार लिया ।
मुरझाए लाखों चेहरों को,
निज प्रेम और मुस्कान दिया।
मई तेरह को सन छप्पन में,
एक सन्त जगत मेंआया है।
अनुशरण किया जिसने उसको,
आह्लादित जीवन पाया है।
सुदर्शन क्रिया करवा कर,
अंतर चानन कर देते हो।
मुश्कान की दौलत दे करके,
अवसाद सकल हर लेते हो।
‘जीने की कला’ के भंडारी,
जन सेवा तेरी कहानी है।
हरि नाम बिखेरो वसुधा पर,
जब तक सागर में पानी है।
हे!हरि प्यारे, हे!शांति दूत,
जग सदैव ऋणी तुम्हारा है।
श्री श्री जी के श्रीचरणों पर,
करबद्ध प्रणाम हमारा है।
-सतीश सृजन, लखनऊ,.