जो मन कुछ ठान ले तो
उतरने लगती हूं
जब कभी पहाड़ियों से घिरे गांव में
मैं पहाड़ी से नीचे उतरते रस्ते पर तो
सोचती हूं कि क्या अब बीच रस्ते
कोई रास्ता ऐसा भी मिलेगा जो
पहुंचायेगा मुझे पहाड़ियों की चोटियों पर
गर मैंने यह सोचा है और
मन ने ऐसा कुछ कर गुजरने का संकल्प ले
लिया है तो
ऐसा अवश्य होगा
जो मन कुछ ठान ले तो
उसके समक्ष
यह जीवन की बाधायें और
तन की कमजोरियां चीज ही क्या हैं
कहीं कुछ रुकता नहीं
ठहरता नहीं
कुछ कर गुजरने की ठान लो तो
बादल पूरा आसमान ढक दे
अपने जिस्म की चादर से
सूरज की एक किरण इन्हें चीर
आसमान के शीर्ष पर चमकने का रास्ता फिर भी
बना ही लेती है
गर आकाश में चमकना
किसी की आंखों में झिलमिलाना
किसी के दिल पर राज करना
इस दुनिया में सदियों तक जगमगाना
इसकी हो नियति।
मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) – 202001