*जो उनको जानते भी हैं, कहाँ कुछ जान पाते हैं (हिंदी गजल/ गीतिका)*
जो उनको जानते भी हैं, कहाँ कुछ जान पाते हैं (हिंदी गजल/ गीतिका)
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जो उनको जानते भी हैं, कहाँ कुछ जान पाते हैं
बिना चेहरा लिए साहिब हमारे पास आते हैं
2
नशा शुरुआत में अक्सर कभी आया, नहीं आया
मगर अब उनके मदिरालय, हर दिन खुल ही जाते हैं
3
कहाँ बाजार में मिलती है लोगों को दुकानों पर
जो अपने हाथ से साहिब हमें मदिरा पिलाते हैं
4
न कोई मंत्र जपते हैं, न कोई ही क्रिया करते
बताऍं क्या कि कैसे हम, उन्हें घर पर बुलाते हैं
5
न जाने खेल कितने जन्म से यह चल रहा होगा
न जाने किस कसौटी पर हमें वह आजमाते हैं
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रचयिता :रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा,रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451