“जुदाई”
“जुदाई”
1)टुकड़ा-2 जोड़कर खुद को,
जैसे-तैसे समेटकर बैठी हूँ
2)हर एक टुकड़ा खुद में ही एक कहानी दर्द की…
और ये कहानी रोज ही कही-सुनी जाती है
3)एक टुकड़ा कहता है और एक टुकड़ा सुनता है
4)फिर भी ये कहानी
न खत्म होती
न बदलती
न देती कोई खुशी
फिर भी रोज चलती
5)चलती जैसे यही जीवन है
यही नियति है
और यही अनन्त
आहें है मेरी
6)जितना गहरा प्यार होता
उतना दर्द होता जुदाई का
उतने ही होते टुकड़े दिल के
जितना पल-2 खुश था
7)जुदाई न मिले किसी को,
जो जिंदगी को जीना भुला देती…
जुदाई होती धड़कन की दिल से
और दिल की जिंदगी से हो जाती जुदाई
8)अ रब मेरे न दे जुदाई मुझे
न कर मुझे जुदा रहमत से अपनी
जानो ये तुम भी कि
जुदाई एक मौत ही है
9)एक ऐसी मौत
जो जिंदगी करती खत्म
और जीना भूला जाती
जब आती जुदाई तो
जिंदगी बनती तड़प
और जीने की चाह भी माँगती हमसे जुदाई!
प्रिया princess पवाँर
स्वरचित,मौलिक
नई दिल्ली-78