जुगनू सी ख़्वाहिश …… लघु रचना
जुगनू सी ख़्वाहिश …… लघु रचना
देर तक ठहरी रही
मेरी निग़ाह
उस मोड़ पर
शायद
तुम लौट आओ
धोखा मिला
मेरी उम्मीद को
अंधेरों में सिमट गया
वो मोड़
शायद में लिपटी उम्मीद
किर्चियों में बिखर गई
कदम आगे बढ़ गए
मगर कम्बख़्त ये निग़ाह
शायद की बुर्ज़ पर खड़ी
वहीं ठहर गई
एक जुगनू सी ख़्वाहिश के साथ
अँधेरे में
सुशील सरना