*जीवित को अभिमान है, मेरा सुंदर गात (हिंदी गजल/दोहा गीतिका)*
जीवित को अभिमान है, मेरा सुंदर गात (हिंदी गजल/दोहा गीतिका)
_________________________
(1)
जीवित को अभिमान है, मेरा सुंदर गात
अट्टहास करता मरण, कहता क्या औकात
(2)
नामी वह जिसने सहा, जग में झंझावात
अचरज तब जल को मिला, जब भी बना प्रपात
(3)
प्रथम शुरू मैं-मैं हुआ, मैं-मैं से शुरुआत
तू-तू मैं-मैं तक बढ़ी, बढ़ते-बढ़ते बात
(4)
जैसे-तैसे कट गया, दिन तो सब चुपचाप
खॉंसी में कैसे कटे, सोचो पूरी रात
(5)
श्रम जो जन करते नहीं, करते कब परहेज
हृदय न उनका झेलता, हल्का भी आघात
(6)
कितनी लंबी हो निशा, कठिनाई का दौर
हारो मत हिम्मत कभी, होगा नया प्रभात
(7)
काला है पेटू-महा, सोखे सातों रंग
शुभ्र श्वेत उसको कहा, त्यागे सारे सात
_________________________
गात = शरीर
प्रपात = ऊॅंचाई से गिरने वाला जल
_________________________
रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451