जीवन मंथन
(4) गीत
॥जीवन मंथन॥
चंदन भी पाया इस जीवन मे़,
और सपोले भी पाए है।
चंदन विष का स्वाद चखा ,
तब, गीतों मे़ अनुभव गाये है ॥
कभी तैर कर मिला किनारा,
कभी भंवर मे़ मिला घुमेरा। ।
जब टूटी अपनी नाव देखता ,
तो यादों मे़ अपने पाए है॥1॥
चंदन भी पाया जीवन मे़. ..
जीवन के इस मन मंथन मे़,
हमने विष को ही गाया है।
अमृत की मृगतृष्णा मे़,
कुछ टूटे सपने ही पाए है ॥2॥
चंदन विष का स्वाद चखा
तब गीतों मे़ अनुभव गाये है॥
जो भी आया मेरी सुनने
वो हँस कर मुझ पर चला गया
अपनी पीड़ा और व्यथा के
गीत स्वयं जब गाये है॥3॥
चंदन विष का स्वाद चखा
तब गीतों मे़ अनुभव गाये है॥
सत्य प्रकाश शर्मा “सत्य “