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11 Aug 2024 · 1 min read

जीवन

जीवन

मिलकर फिसलना बहुत ही दुखद है।
लिखकर मिटाना कहाँ का सुखद है?
सुखकर बनो प्रेम गीता पढ़ाकर।
हितकर बनाओ मनुजता सिखाकर ।

हर पल चमकता सितारा दिखेगा।
जब मन सुशोभित हिमालय बनेगा।
कहकर न हटना हृदय को न तोड़ो।
मधुरिम सहज प्रीति से रीति जोड़ो।

साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।

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