जीवन
जीवन
मिलकर फिसलना बहुत ही दुखद है।
लिखकर मिटाना कहाँ का सुखद है?
सुखकर बनो प्रेम गीता पढ़ाकर।
हितकर बनाओ मनुजता सिखाकर ।
हर पल चमकता सितारा दिखेगा।
जब मन सुशोभित हिमालय बनेगा।
कहकर न हटना हृदय को न तोड़ो।
मधुरिम सहज प्रीति से रीति जोड़ो।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।