जीवन यात्रा
मनुष्य जीवन एक ऐसी यात्रा को संदर्भित करता है जो अत्यंत आनंददायक हो सकता है यदि इसे यथोचित विवेक के साथ पूरा किया जाए और विवेक के अभाव में यह कष्टकारी भी सिद्ध हो सकता है। इस संपूर्ण यात्रा को संपन्न करने के लिए सबसे आवश्यक है “उत्तरदायित्वो को निभाना” हमारे तीन उत्तरदायित्व है पहला स्वयं के प्रति,दूसरा परिवार के प्रति,तीसरा समाज के प्रति। जिसमें सबसे पहला आता है स्वयं के प्रति जो कि अत्यंत आवश्यक है अगर इसे सफलतापूर्वक किया जाए तो बाकी के दो भी पूरे किए जा सकते हैं। अब बात यह आती है कि स्वयं के प्रति हमारा क्या उत्तरदायित्व है इसमें हमारा प्रथम कर्तव्य है कि हम स्वस्थ व प्रसन्न रहें , मनुष्य अगर शरीर से ही स्वस्थ नहीं है तो कोई धन दौलत उसे प्रसन्नता नहीं दे सकती है और सबसे बड़ा उत्तरदायित्व है कि हम अपने मस्तिष्क को स्वस्थ रखें , अपने विचारों को स्वस्थ रखें क्योंकि सोचने का काम हमारा मस्तिष्क करता है और अगर वही खराब हो गया तो जीवन में किसी उद्देश्य को पूरा करने की आशा नहीं कि जा सकती है। क्योंकि हमारे विचार मस्तिष्क से ही संचालित होते हैं और उन विचारों के अनुसार ही हम क्रियाएं करते हैं। अगर विचारों का केंद्र मस्तिष्क ही रोगी हो गया तो हमारे क्रियाकलापों की स्वस्थता की बात कैसे की जा सकती है। मस्तिष्क को स्वस्थ रखने के लिए अच्छी व नैतिक पुस्तकों का स्वाध्याय करना जरूरी है। जो हमारे अंदर सकारात्मक विचारों को जन्म देगी ।और जब हमारे अंदर सकारात्मकता का संचार होगा तो वहीं उर्जा में रुपांतरित होकर हमारे क्रियाकलापों को नयी दिशा देते हुए हमारे इस जीवन यात्रा को सार्थकता से अभिभूत करेगी।
।।रुचि दूबे।।