*जीवन (कुंडलिया)*
जीवन (कुंडलिया)
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जीना खुलकर चाहिए ,सबको ही स्वच्छंद
बोलो कब अच्छे लगे , किसे द्वार सब बंद
किसे द्वार सब बंद ,न खिड़की-रोशनदानें
भीतर की आवाज , शत्रु जैसे सब जानें
कहते रवि कविराय ,घूँट क्या कड़वे पीना
जिओ ठीक उस भाँति ,चाहते जैसे जीना
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451