जीवन की समीक्षा भाग ०२
मनुष्य इस धरती पर आने के बाद ही सब कुछ यहां से ही सीखता है। और यहीं पर छोड़ कर चला जाता है।पर जीवन की सच्चाई न तो माता-पिता बतातै है, और न कोई गुरु। मनुष्य के प्रथम गुरु उसके माता-पिता ही होते हैं। लेकिन वे दैनिक उपयोग की चीजों के बारे में बतलाते हैं। कैसे खाना खा जाता है। कैसे कपड़े पहनते हैं। कैसे बात करते हैं इत्यादि।।।यह चीज़ें अपने माता-पिता और परिवार से सीखता है। इसके बाद हमें एक आध्यात्मिक गुरु की आवश्यकता होती है।जो आपको एक गुरु मंत्र ही देते हैं। और किसी एक वस्तु को छोड़ने का संकल्प करवाते हैं। इसके बाद गुर अपनी जवाबदारी भूल जाता है। आज के युग में एक अच्छा गुरु मिलना बड़ा मुश्किल है।इस पुस्तक पढ़ने के बाद तो कोई गुरु बनाने की आवश्यकता ही न पड़े।यह पुस्तक अपने आप में एक गुरु मंत्र के समान है।अगर आपने इस पुस्तक के एक एक शब्द को ध्यान से पढ़ा तो आपका कल्याण हो जायेगा।