जीने को नया एक ख्वाब मिला….
~ जीने को नया एक ख्वाब मिला ~
कभी मुस्कुराता गुलाब मिला
कभी अश्कों का सैलाब मिला
सुख या दुख इस जिंदगी से
जो भी मिला बेहिसाब मिला
मिला असल चेहरे में कभी
कभी ओढ़े कई नकाब मिला
देखा जो वक्त की ओर हमने
न लाज न कोई हिज़ाब मिला
‘नहीं सगा वह किसी एक का’
दो टूक ये उसका जबाब मिला
अतीत से जब मुलाकात हुई
मीठी यादों का असबाब मिला
लाख जतन करके हम हारे
पहले सा न अब शबाब मिला
बेताब नज़र थी जिसके लिए
वो धुन में अपनी बेताब मिला
टिकते न पाँव जमीं पर उसके
पंख जैसे उसे सुर्खाब मिला
प्रश्न तैरता रह गया हवा में
अब तक न कोई जबाब मिला
सत्ता जब-जब मद में चूर हुई
जन-ज्वार बन इंकलाब मिला
हुई अनंत जब ‘सीमा’ गम की
जीने को नया इक ख्वाब मिला
— © डॉ.सीमा अग्रवाल —
मुरादाबाद
“अर्पण” से