जीत कहाँ(कविता)
अदालत का फैसला
इतिहास बन गया।
वर्षों पुराना विवाद
सुलझ गया श्रीमान।।
चार सौ साल से ज्यादा
समय तक सताया।
बहुत हुए शहीद
होते रहे बलिदान।।
धन्यवाद लोकतंत्र
जनता के हाथ तंत्र।
शासन की मंशा भांप
भारत भी वर्तमान।।
सुन सुन लगातार
प्रमाण बने आधार।
निर्णय दे शानदार
न्यायालय पाया मान।।
कहते सब जीत है
जीते हैं अब श्रीराम।
मुस्करा कर कहते
मुझे समझ इंसान।।
कब लड़ा अदालत
कब बेघर हुआ मैं।
सब मेरे अपने हैं
हिन्दू हो मुसलमान।।
जीत मेरी हुई कहां
मुझे तू मत उछाल।
जीत तो उनकी हुई
जो मानते मेरा स्थान।।
जो रखते हैं विश्वास
अयोध्या पावन धाम
जन्मभूमि के निशान।।
जीत गया है भारत
सर्वसम्मति पाकर।
विवाद रहित हुआ
मेरा भक्त हिंदुस्तान।।
मेरी जीत आगे होगी
धर्म में न जाति होगी।
संप्रदाय खाई पाट
भारत बने महान।।
(राजेश कुमार कौरव सुमित्र)