जिन्दगी खर्च हो रही है।
बेकार के कामों में जिन्दगी खर्च हो रही है।
कमबख्त हमको यह मर्ज जैसी लग रही है।।
जिन्दगी हमारी किश्तों के जैसी चल रही है।
आती जाती ये सांसें कर्ज जैसी लग रही है।।
रोजे महशर है सारे आमाल देखे जा रहे है।
आज हर जिन्दगी ही अपना हश्र पा रही है।।
बड़े मुश्किल जिन्दगी के हालात हो गए है।
आज हर बात मां बाप की फर्ज लग रही है।।
ना जानें कहां उसका दिले यार खो गया है।
आशिक की जिंदगी है दर दर भटक रही है।।
हर सम्त ही यह कैसी खामोशी सी छाई है।
खिजां है बहार में हवाएं भी सर्द लग रही है।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ