जिन्दगी का राज
कल जो हमारे साथ
चला करता था
ऊंगली पकड़कर,
आज कतराते है वह
हमारे हाथ थामने को,
टाल देते है हमें
अक्सर किसी बहाने से ,
सामने रहकर भी
कितने दूर रहने लगे
हम उन कमबख्तों से ;
कुछ न कहेंगे हम
ढालो तुमलोग सितम
हम पर चाहे जितना आज,
सजा तो मिलेगी तुम्हें भी
पता चलेगा तब
क्या होती है
जिन्दगी का राज?