जिज्ञासा
सीखने की प्रवृत्ति का जन्म जिज्ञासा से होता है । जिज्ञासा सीखने की अनुपूरक है ।
दुनिया में जितने भी वैज्ञानिक, महापुरुष, राजनीतिज्ञ एवं दार्शनिक हुए है । उन सभी लोगो में एक विषय-वस्तु समान रूप से विद्यमान थी । जिसका नाम जिज्ञासा है । वह जिज्ञासा ही है, जो इंसान को चांद,ग्रह,नक्षत्र,तारो एवं ब्राह्मंड तक पहुंचायी । उत्सुकता ही सीखने की जननी है।
प्राकृतिक में हो रहे क्रियाकलापो का अध्ययन कर अनगिनत वैज्ञानिक हुए ।जैसे न्यूटन की उत्कट जिज्ञासा ने ही गुरुत्वाकर्षण को ढूंढ निकाला, तो आर्कमिडीज ने उत्प्लावन बल यानि की किसी भी वस्तु की जल में परिवर्तनीय स्थिति । वह जिज्ञासा ही थी जिसने थॉमस एल्वा एडिसन को विद्युत बल्ब बनाने के लिए प्रेरित की।वह जिज्ञासा ही थी डार्विन को प्राकृतिकवाद सिद्धांत को ढूँढने में कारगर सिद्ध हुई ।जिज्ञासाओ के डोर के सहारे ही अरस्तू,सुकरात,प्लेटो, कार्ल मार्क्स,रूसो,स्वामी विवेकानंद एवं कन्फ्यूशियस जैसे महान दार्शनिक समाज मे हो रहे विचारो,आदतो,व्यवहारो,और संस्कारो से पङने वाले प्रभाव को बताया और समाज को एक नई दिशा दी ।
कोरे आसमान में जैसे तारे टिमटिमाते हुए नजर आते है, हूबहू वैसे ही मस्तिष्क पटल पर जिज्ञासा सदैव सक्रिय रहती है ।
चिङियो के उङान को देखकर प्रकट हुई जिज्ञासा ने राइट बंधुओ को हवाई जहाज बनाने के लिए प्रेरित किया ।
वो जिज्ञासा ही थी जो जेम्स वॉट को भांप का इंजन बनाने को लिए प्रेरित की ।
जिज्ञासा का प्रबल रूप ही महान आविष्कारक, दार्शनिक,संगीतकार मनोवैज्ञानिक इत्यादि ओजस्वी, तेजस्वी प्रारूपो की सीढ़ी है ।
जिज्ञासा ही के सहारे एकलव्य गुरु द्रोणाचार्य को प्रस्तर के ही प्रतिबिम्ब के रूप मे गुरू मानकर अपनी मेहनत और लगन से दुनिया का सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बन दिखाया । वो अर्जुन की जिज्ञासा ही थी जो भगवान् श्रीकृष्ण के मुख से कुरूक्षेत्र के मैदान में ज्ञान गंगाधारा गीता के रूप में पूरे सृष्टि को मोक्ष का मार्ग दिखाने वाली ज्ञानपुंज के रूप में सामने आई ।
सारे आविष्कार, किसी भी चीज का उद्भव,इतिहास, मोहनजोदङो, हङप्पा, लोथल,महासागर की विविधता, ब्रह्मांड की सर्व व्यापकता सभी के संदर्भ में जानने से पहले मानव ने जिज्ञासा किया होगा ।
जिज्ञासा मस्तिष्क की आत्मा है,चंचलता उसकी धारा है ।
जिज्ञासाओ के सहारे इंसान दुनिया के कई अनसुलझे रहस्यो को सुलझा सकता है ऐसा मेरा मानना है ।