जिंदगी के पाठ
जिनगी के जे पाठ पढ़ाथे
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तन मन से अंधियार मिटाके हिरदे ल उज्जर करथे,
रीति धरम के दीया जलाके ज्ञान पुंज घट मा भरथे।
मरम यही मन म समेट जग नंदन करना हे,
अइसे गुरुवर के हम सब ल बंदन करना हे।।
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अपन शिष्य मन के अंतस ल, जेहर पल म पढ़थे।
कुम्भकार के जइसे बनथे , शिष्य हिरदे ल गढ़थे।।
गुरु ह नाव खेवैय्या बन के, बेड़ापार लगाथे।
भाग्य विधाता भी गुरुवर के सोये भाग जगाथे।
खेवनहार के माथ तिलक बर चंदन करना है।
अइसे गुरुवर के हम सब ल बंदन करना हे।।
//2//
मान बड़ाई नई चाहे जे,सदा समर्पण करथे।
दुनिया ल उजियार करे बर,तन मन अर्पण करथे।
जीवन भर कुटिया म रहिथे,रूखा सुखा खाथे।
लेकिन अपन विद्यार्थी ल,परम महान बनाथे।
श्रद्धा के दो फूल चढ़ा,अभिनंदन करना हे।
अइसे गुरुवर के हम सब ल बंदन करना हे।।
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✍️✍️डिजेन्द्र कुर्रे”कोहिनूर”✍️✍️