*जिंदगी के अनोखे रंग*
जिंदगी के अनोखे रंग
जब से रिश्तों में कमियाँ
नजर आने लगी है
खामोशियां दिल पर छाने लगी है।
वक्त बे वक्त की तन्हाई
रास आने लगी है
तकदीर अनोखे रिश्तो की
कहानी लिखने लगी है।
इस कदर जिंदगी ने
रुख बदल लिया है
मुस्कुराहटें भी नकली
नज़र आने लगी है।
कदम दो कदम संभल कर
चलने की कोशिश तो करते हैं
मगर वक्त की मार हमको डरने लगी है।
खुद से जूझकर मंजिल तो पा लेंगे
लेकिन मंजिल की तलाश में
जो खुशियाँ छीन जाएगी
उसकी तलब हमको डराने लगी है।
हरविंदर कौर, अमरोहा (उत्तर प्रदेश)