जिंदगी और पहल
नृत्य प्रकृति करती है
अस्तित्व मेरा द्रष्टा
हर संयोग
उससे जुड़े हुआ,
कोई रोता है
कोई हँसता,
तरंगों का खेल है,
सर्प नहीं देखता,
चाँदनी रात में
ज्वार भाठा बनता
हिरण भी धुन में फँसते,
मृग नाभि कस्तूरी बसे
वह भी जंगल जंगल भटकता
इंसान तू ही तू वो है
जिसके लिए तरसता
#जिंदगी_और_मैं ✍️