जाल अपनी मुहब्बत का
जाल अपनी मुहब्बत का , बिछाया है उसने मुझ पर
क्या खूब नशा छाया है, उसकी मुहब्बत का मुझ पर
न दिन को चैन , न ही रात को नींद का आलम
क्या अजब खुमार छाया है, उसकी मुहब्बत का मुझ पर |
जाल अपनी मुहब्बत का , बिछाया है उसने मुझ पर
क्या खूब नशा छाया है, उसकी मुहब्बत का मुझ पर
न दिन को चैन , न ही रात को नींद का आलम
क्या अजब खुमार छाया है, उसकी मुहब्बत का मुझ पर |