जाना है बड़ी दूर उसे अपने नगर से
तैयार हुआ है न निकलता ही है घर से
जाना है बड़ी दूर उसे अपने नगर से
पहले तो रही फ़िक़्र कि आना भी उसे है
दम ख़ुश्क हुआ आज भी जाने की ख़बर से
देखा जो तलातुम तो किया फ़ैसला इकदम
कश्ती को किनारे पे रखा दूर भँवर से
मुश्किल थी कई बार बहरहाल मैं गुज़रा
ले प्यार की वो पालकी भी राहगुज़र से
जज़्बात मैंने दिल के सलीके से सजाकर
लिक्खी है ग़ज़ल अश्क़ से औ’र ख़ूने-जिगर से
बेचा है ज़मीरों को फ़क़त पैसे की ख़ातिर
नफ़रत से चले दूर भी उल्फ़त की डगर से
रहता है नज़रबन्द सदा अपनी अना में
लेना भी उसे क्या है भला शामो-सहर से
जिनमें न बड़ों का था अदब और सलीका
जाहिल ही रहे कुछ न मिला इल्मो-हुनर से
बेचैन सभी लोग किनारे पे खड़े हैं
आना है उसे आज अभी अपने सफ़र से
फैशन का असर आज नई नस्ल पे दिखता
‘आनन्द’ तो हर बार रहा दूर असर से
शब्दार्थ:- तलातुम=brewing storm/समुद्री तूफ़ान
डॉ आनन्द किशोर