जाति- पाति, भेद- भाव
जाति- पाति का भेद- भाव
इस अनूठे से भव, जहां में
कब से चलता आ रहा ?
इसका कोई न ठौर ठिकाना
यह भी न था पता खलक में
कब होगा जाती-पाति का अंत
सतत बाबा साहब अंबेडकर ने
इनको अव्यक्त करने की सोची
यह था वृहत ही दुस्साध्य कार्य
बाबा साहब ने उखाड़ फेंके इन्हें ।
जाति- पाति, भेद- भाव खल्क में
पौराणिकय से चली आ रही थी
किसी भी ऊंची जाति के नरों के
अवलंबित माना जाता था इन्हें
निरुत्तर दलित जाति के जनों से
पृथक होकर ही रहना चाहते थे
कुआँ से शम्बर पीने का भी इन्हें
न था अधिकार इन दलितों को
आज भी कुछ ठाँवों को छोड़ के
शहरों में तो इनका अता न पता
बाबा साहब का था ये अनूप कदम
आज प्राय इन सबों से मुक्त है भारत ।
अमरेश कुमार वर्मा
जवाहर नवोदय विद्यालय बेगूसराय, बिहार