जागो
जागो
जंगलात को काट काट हम बना रहे हैं शहर,
प्रकृति का प्रकोप कभी बन कर गिरेगा कहर।
कुदरत और प्राणी दोनों हैं इक दूजे के पूरक,
न समझा मानव अभी तो आगे पछताएगा मूरख।।
——–रंजना माथुर दिनांक 09/07/2017
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
©
जागो
जंगलात को काट काट हम बना रहे हैं शहर,
प्रकृति का प्रकोप कभी बन कर गिरेगा कहर।
कुदरत और प्राणी दोनों हैं इक दूजे के पूरक,
न समझा मानव अभी तो आगे पछताएगा मूरख।।
——–रंजना माथुर दिनांक 09/07/2017
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
©