जागृत चेतना का कवि
मैं क्या करूं, मुझसे
गुलामी नहीं होती!
किसी तरह ज़मीर की
नीलामी नहीं होती!
जिनके हाथ रंगे हुए
ख़ून में अवाम के
उनको सिर झुका कर
सलामी नहीं होती!
Shekhar Chandra Mitra
#CommunalPolitics
मैं क्या करूं, मुझसे
गुलामी नहीं होती!
किसी तरह ज़मीर की
नीलामी नहीं होती!
जिनके हाथ रंगे हुए
ख़ून में अवाम के
उनको सिर झुका कर
सलामी नहीं होती!
Shekhar Chandra Mitra
#CommunalPolitics