ज़िन्दगी
न दंभ का प्रकोप हो ।
न निशा का अवलोक हो ।
न कोई रोक – टोक हो।
शौक में जिए सदा।
न कोई ग़म और शोक हो ।
धरा स्वर्णिम हो अपने यशगान से ।
जिए मान और सम्मान से।
डर रहे केवल बुरे काम से।
नहीं तो कोई डरता नहीं किसी तूफान से ।
दर्द, आंसू सब फरेब है।
असल में ज़िंदगी तो इसी की भेंट है।
मंज़िल सुखमय जीवन है जीना नहीं।
बल्कि है ये की हम कभी दुनिया में मरे नहीं।
ज़िंदा रहे बनकर याद जो।
समझो है उसी की सफल ज़िन्दगी।