ज़िद्दी मन
नादां इंसान उड़ता
न हौसलों की उड़ान
न फहराता एवरेस्ट पर तिरंगा
न छूता वह चांद
न होती किसी लक्ष्य की सिद्धि
यदि न होता यह मानव मन जिद्दी ।
न करता वो मेहनत ओ मशक्कत
न ही चढ़ता उन्नति की सीढ़ी
न चूल्हे से माइक्रोवेव तक जाते
न पहुंचती बैलगाड़ी से एरोप्लेन नयी पीढ़ी
न हासिल होती उसे सुख समृद्धि
यदि न होता यह मानव मन जिद्दी ।
यदि मानव नहीं होता हठीला
यदि न होता वह जोशीला
यदि वह लक्ष्य को नहीं साधता
यदि वह संकल्प नहीं बांधता
तो रुक ही जाती उसकी वृध्दि
यदि न होता यह मानव मन जिद्दी ।
राहों में कांटे चुभ चुभ जाते
पर्वत बाधाएं बन जाते
बादल बिजली बाढ़ सताते
यदि मानव में न होती सहन शक्ति
तो रुक जाता विकास होती अवरुद्धि
यदि न होता यह मानव मन जिद्दी ।
रंजना माथुर
दिनांक 08/12/2017
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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