ज़ब आपने साथ छोडते है
जब अपने साथ छोड़ते है
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जब अपने साथ छोड़ते हैं,
मुख उनसे खास मोड़ते हैं|
राहें नजरों से दूर ओझल,
रास्तों के बीच रोकते है|
वो सुनते भी नहीं दलीलें,
वार्ता के मध्य टोकते हैं|
गैरों से है हसीन महफिल,
अपने तो खूब नोचते हैं|
छलनी हो हृदय उसी पल,
कड़वे से बोल बोलते हैं|
मनसीरत है बयां करे पक्ष,
सीने में तीर ठोकते है|
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)