ज़ख़्म मेरा, लो उभरने लगा है…
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Ramal musaddas maKHbuun mahzuuf
faa’ilaatun fa’ilaatun fa’ilun
2122 1122 112
ज़ख़्म मेरा, लो उभरने लगा है
शहर इक नाम से, डरने लगा है
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प्याले विष ,कोई अभी हाथ न थे
पर जहर नस नस , उतरने लगा है
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हाथ आया क्या जमाना जो गया
‘पर’ समय कौन, कुतरने लगा है
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अब तुझे भूल ,कवायद जो करें
अक़्स दिल जान अखरने लगा है
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इक बसाहट थी तिरे नाम यहाँ
वो भी खामोश उजड़ने लगा है
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साथ साये की तरह मेर रहा
खौफ से वो भी बिछुड़ने लगा है
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सुशील यादव
न्यू आदर्श नगर
जोन 1 स्ट्रीट 3 दुर्ग छत्तीसगढ़
20.4.24