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18 May 2024 · 1 min read

ज़ख़्म मेरा, लो उभरने लगा है…

74….

Ramal musaddas maKHbuun mahzuuf
faa’ilaatun fa’ilaatun fa’ilun
2122 1122 112

ज़ख़्म मेरा, लो उभरने लगा है
शहर इक नाम से, डरने लगा है
#
प्याले विष ,कोई अभी हाथ न थे
पर जहर नस नस , उतरने लगा है
#
हाथ आया क्या जमाना जो गया
‘पर’ समय कौन, कुतरने लगा है
#
अब तुझे भूल ,कवायद जो करें
अक़्स दिल जान अखरने लगा है
#
इक बसाहट थी तिरे नाम यहाँ
वो भी खामोश उजड़ने लगा है
#
साथ साये की तरह मेर रहा
खौफ से वो भी बिछुड़ने लगा है
#
सुशील यादव
न्यू आदर्श नगर
जोन 1 स्ट्रीट 3 दुर्ग छत्तीसगढ़

20.4.24

16 Views
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