जहां चाह वहां राह
जहां चाह वहां राह
पढ़ने में ज्यादा मन नही लगता था फिर भी पढ़ना तो बहुत ही जरूरी है ।शिक्षा के बिना हम अपने मुकाम
तक पहुच ही नही सकते हमारी शिक्षा ही सफलता की रीढ़ की हड्डी है,जो हमे हर पल खड़ा रखती है।
मैं रियान पढ़ने में थोड़ा कमजोर था पर इतना भी नही की उत्तीर्ण न हो पाऊँ जैसे तैसे रट्टा लगाकर पास हो ही जाता था। पर घर वालो को उम्मीद भी मुझसे बहुत थी।
पर कहते है ना सब का मस्तिष्क एक सा नही होता
सब की बुद्धि अलग होती है। पर घर वाले बस एक ही बात उसे देख वो कितना होशियार है ।
और तुझे देख ट्यूशन भी ले रहा फिर भी सिर्फ पास मार्क लेकर आया है,और उसे देख कितना अच्छा नंबर लाया है वो भी बिना ट्यूशन लिए ,यह तो सब के घर की बात है।
फिर भी मैं रियान मां और पापा के बातों का बुरा नही
माना कभी जितना भी आता था ठीक है मैं जितना भी मेहनत कर लूं मुझे पता था मैं इन नंबर से खुश था
औरो की तरह फेल तो नही हो रहा पास ही हो रहा हूं
पर ये बात कभी घर वालो को बोल नही पाया।
मेरा मन तो सिर्फ विडियो गेम में लगा रहता और कम्प्यूटर में गेम खेलता। जितना समय मैं गेम में
लगाता था उससे कम अपनी पढ़ाई को देते था।
ये बात सिर्फ मुझे और मेरी दीदी आशिया को पता
थी काहे को उसी ने मुझे कम्प्यूटर चलाना और गेम
खेलना सिखाया था। दीदी 12th के बाद कम्प्यूटर
B.Tech (Bachelor of Technology) degree कर रही थी जो की 4 years duration की होती है.
अब ऐसे ही साल बीत गया मैं 9th पास कर के 10th में आ गया पर अभी भी मैं वीडियो गेम खेलना
बन्द या कम नही किया ।
मैं गायत्री पब्लिक स्कूल में पढ़ता था वहां अब एक नया कोर्स ऐड हो रहा था कम्प्यूटर जो सारे लोगो के लिए कॉमन था। फीस उसकी काफी सस्ती थी महीने के 30 रुपये मात्र ।
मैं तो इतना ज्यादा खुश हुआ कि पूछो ही मत अब घर मे भी और स्कूल में भी वीडियो गेम खेलने मिलेगा। पर मुझे ये तो नही पता था कि उसमें गेम
इंस्टाल करना होता है। जब अपने बेंच की बारी आई
कम्प्यूटर क्लास में जाने की तो देखा चेक किया पर घर वाली गेम तो मुझे मिली ही नही।
पर पता नही सब मेरी तरफ ही देख रहे थे सारे क्लास की लड़की और लड़के मानो मैंने कोई चोरी कर ली है और पकड़ा गया हूं।
सर आये उन्होंने पूछा ये वाला सिस्टम किसने on किया है। सब ने मेरी तरफ देखा और अपने क्लास
का सबसे होशियार बन्दा अमन ने मेरा नाम ले दिया
फिर क्या सर ने मुझे अपने पास बुलाया और पूछा तुम जानते हो इसे चालू करना।
मैंने कहा जी सर इसमें कौन सी बड़ी बात है स्विच बोर्ड में पलक लगया और नीचे से cpu को ऑन किया ।
सर ने पूछा क्या क्या आता है कम्प्यूटर में तो मैने कहा वीडियो गेम खेलना।
सब हँस दिए ..?
अब क्लास चलते गई और इसी तरह 3 महीने बीत गए और मेरी रुचि भी कम्प्यूटर में बढ़ने लगी फिर एक दिन मैंने दीदी से पूछा कि दीदी मेरे स्कूल में भी
कम्प्यूटर सीखा रहे है,और वहां तो गेम नही है फिर दीदी ने भी मुझे सारा कुछ बताने लगी मैं मन लगा कर सीखने लगा।
एक रोज वीडियो गेम खेलते खेलते मैंने दीदी से पूछा दीदी आज जो हम दोनों गेम खेल रहे है इस गेम को किसने बनाया होगा और ये गेम किसने सोच होगा मै
भी गेम बनाऊंगा ।
गेम खत्म की फिर दीदी ने मुझे बेसिक बताया मैं इंटरनेट पर लग गया अब मेरा मन खेलने में नही सिर्फ गेम बनाने में लग गया।
10th बोर्ड था तो पढ़ाई भी जरूरी थी दीदी ने
थोड़ा डॉट लगाई और कहा अब तू अपने 10th
पर फ़ोकस कर नही तो फेल हो गया तो मार भी
पड़ेगी पापा से।
फिर क्या मैंने एक रोज जब कम्प्यूटर on किया तो हुआ on पर पासवर्ड देने को कह रहा था ।
ये सब दीदी ने किया था ताकि मैं अपनी पढ़ाई में ध्यान लगाऊँ,वो भी अपनी जगह सही थी मैंने भी
दीदी से पासवर्ड नही पूछा और सिर्फ पढ़ने में लग गया।
अब जो भी था सिर्फ स्कूल के कम्प्यूटर से अपने सवालों का जवाब इंटरनेट के जरिये इकट्ठा कर रहा था एक कॉपी में पूरा लिख लेता था।
सर ने मुझे एक दिन नेट चलाते हुए पकड़ लिया ।
कहाँ यहां तो इंटरनेट की सुविधा नही तो तुम कैसे
इंटरनेट चला रहे हो।
सर विशाल बहुत ही अच्छे थे उन्होंने डॉट कर नही प्यार से पूछा तो मैंने सर को सारा कुछ बता दिया
सर मैं डोंगल से चला रहा हूँ।
सर ने जब देखा कि मैं गेम के बारे में पढ़ रहा हूँ तो
विशाल सर ने पूछा । मैंने सर को सब बता दिया
की मुझे जानना है गेम कैसे बनता है ।और इसे
कम्प्यूटर में कैसे इंस्टाल करते है।
सर ने मुझ पर अब ज्यादा ध्यान देने लगे अब क्लास
के समय तो सिर्फ बेसिक ही बताया करते जो सब को बताते थे ।
पर मैं जब भी क्लास में टीचर नही आती थी या छुट्टी
पर होते थे तो मैं सीधे विशाल सर के पास चला जाता
और पूछने लगता ।
अब मुझे कम्प्यूटर की बेसिक तो आ गई थी । और साथ ही साथ पढ़ाई भी कर रहा था।
सर ने एक दिन मुझे कहा अगर तुम्हे और ज्यादा सीखना हो तो तुम क्लास खत्म हो जाने के बाद
एक्स्ट्रा क्लास के रूप में स्कूल में रुक जाना मैं तुम्हे एक घण्टे और सीखा दूँगा।
मैंने पापा और मम्मी को बता दिया अब से एक्स्ट्रा क्लास चलेगी तो मैं स्कूल से लेट आऊँगा।
अब पढ़ाई भी और कम्प्यूटर भी साथ साथ चल रहा था। और इधर दीदी से भी कुछ डाउट रहता वो भी पूछ लेता ।
10th का एग्जाम भी चालू हो गया कुछ दिनों के लिए कम्प्यूटर से मैंने दूरी बना ली । मैं अपने पढ़ाई में लग गया ।
एग्जाम खत्म हो गए और फिर मैं apne गेम के पीछे लग गया अब स्कूल बंद हो गए थे तो अब दिदु ही थी जो मुझे सीखा रही थी ।
10th का रिजल्ट आया मैं पास हो गया था ।
और सबसे ज्यादा मुझे कंप्यूटर में ही मिल था ।
अरे सबसे ज्यादा पूरे स्कूल में टॉप किया था ।
अब 11th भी पास हो गया अब 12th चल रहा था
साथ ही साथ विशाल सर और दीदी की मदद से मैने
एक गेम बना लिया ।
12 th का एग्जाम दिया पास हुआ और मेरे गेम को
एक कम्पनी खरीदने पापा के नंबर पर फोन आया तो
मुझे पापा ने मुझे बुलाया और मैं बात करने लगा।
बात खत्म हुई और मैने अपने गेम का सॉफ्वेयर
उनको भेज दिया । बाद में पापा से थोड़ी डॉट पड़ी
पर बाद में जब उन लोगो ने पैसे दिए और कहा कि
आप बहुत ज्यादा इंटेलिजेंट हो पर आप के गेम को
कुछ बग और कमियां है । फिर भी आप की सोच
बेहद अच्छी है गेम की डिजाइन भी।
फिर क्या मैं आगे की पढ़ाई के लिए बेगलुर चला गया
जिस कंपनी में मैने अपना सॉफ्वेयर भेजा था वही लोग मेरा पढ़ने का ख़र्च उठा रहे थे ।
सर को भी ये बात बताना चाहता था मिल कर पर
कभी मुलाकात ही नही हो पाई है। और उनका नंबर भी मेरे पास नही है ।
जब बेगलुर से वापस आया तो सर से बात हुई जो सब से ज्यादा होशियार बन्दा था पाने स्कूल का उससे
ही सर विशाल का नंबर मिला। फोन की बात की सर
बहुत ही ज्यादा खुश हुए ।
गेम खेलते खेलते एक गेम डेवलपर्स बन गया यही तो है जहां चाह वहां राह ।
©® प्रेमयाद कुमार नवीन
जिला – महासमुन्द (छःग)